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poetry औकात
poetry Hastakshar (Signature)

 

बचपन की बाहों मे जिनसे सीखे थे अक्षर, 

हस्ते -हस्ते रो दिए, कभी रो दिए जो हंसकर, 

हमें सभी बाते ज्ञान की पढ़ा कर, 

और खुद! मोह और लोक लाज मे फसकर, 

बुरे वक्त मे बेटी ही थी! 

यह भुलाकर, 

अब सब मेरा ही है, यह मानकर, 

"मेरे लिए बेटा- बेटी एक ही है"

सदा यह झूठ कहकर, 

और स्वयं ही भावनाओं के दल दल मे धसकर, 

सुलझा रहा है इस गुत्थी को, 

की किसके लिए करू मै 

हस्ताक्षर। 

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