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poetry Karz

 

उधार, रिंड, कर्ज़ केह लो… .. मतलब सब का एक है।

लेते तो है सब, लेकिन चुकाता सिर्फ जो नेक है ।

 

मांगने वाला सिर्फ एक बार है मांगता ।

देने वाले को लग जाते जन्म अनेक हैं ।

 

उधार कोई लेता पैसा .. और चीज़ कोई लेता हैं ।

कोई लेता सुख..और दुख कोई लेता है ।

कोई लेता समय..और लेता कोई मसरूफियत है ।

कोई लेता सुविधा और लेता कोई क्लेश है ।

 

पैसों का उधार लोग सबसे पहले चुकाते है ।

फिर क्यूँ जन्म देने वाले का ही भूल जाते हैं? 

 

विनती है मेरी सबसे , चाहे कोई..कर्ज़ मत चुकाना, 

लेकिन मरते दम तक अपनो को तुम ना ठुकरना ।

 

सूद दुनिया लेती है चाहे कुछ भी गिरवी रख दो, 

माँ- बाप लेकिन बदले में सिर्फ मूल सा प्यार मांगते है ।

 

खुद को बेचकर भी ना चुके, ऐसा यह कर्ज़ है ।

आने वाली पीढ़ी को बताओ की ये कर्ज़ नही..फर्ज़ है ।

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