उधार, रिंड, कर्ज़ केह लो… .. मतलब सब का एक है।
लेते तो है सब, लेकिन चुकाता सिर्फ जो नेक है ।
मांगने वाला सिर्फ एक बार है मांगता ।
देने वाले को लग जाते जन्म अनेक हैं ।
उधार कोई लेता पैसा .. और चीज़ कोई लेता हैं ।
कोई लेता सुख..और दुख कोई लेता है ।
कोई लेता समय..और लेता कोई मसरूफियत है ।
कोई लेता सुविधा और लेता कोई क्लेश है ।
पैसों का उधार लोग सबसे पहले चुकाते है ।
फिर क्यूँ जन्म देने वाले का ही भूल जाते हैं?
विनती है मेरी सबसे , चाहे कोई..कर्ज़ मत चुकाना,
लेकिन मरते दम तक अपनो को तुम ना ठुकरना ।
सूद दुनिया लेती है चाहे कुछ भी गिरवी रख दो,
माँ- बाप लेकिन बदले में सिर्फ मूल सा प्यार मांगते है ।
खुद को बेचकर भी ना चुके, ऐसा यह कर्ज़ है ।
आने वाली पीढ़ी को बताओ की ये कर्ज़ नही..फर्ज़ है ।
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