तिन का -तिन का जोड के बनाया मैंने एक घरों दा,
जाने कहा से तेज़ हवा आई या किसी ने रौंदा,
मै तो समझाती रही गेरो को भी अपना,
मेरा परिवार मेरी दुनिया, सिर्फ था छोटा सा एक यही सपना,
किसी को कुछ कमी ना हो, यह ख्याल मैंने रखा,
पर असल मे मुझे क्या चाहिए यह किसी ने ना देखा।
मैंने जो गलत के खिलाफ आवाज उठाई,
बदले में नाकामी ही मेरे हाथ आई।
घर….. परिवार… .. बच्चे… .. ,
क्या मै ही थी इन सबकी ऋणी?
क्यो नहीं वो पूरी कर पाया अपने ही पिता की कमी?
वहाँ वापिस ना जाने का मेरा यह निर्णय अटल है।
क्यू की अब आगे जीवन मे मुझे होना सफल है।
आशा है मेरी, मेरे आने वाले कल से,
की वे कभी ना जुड़े मेरे बीते हुए कल से ।
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